हो गए हैं सैकडो साल,गाँव को छूटे हुए,
जोड़ता हूँ आज भी,स्वपन मैं टूटे हुए,
जी रहा हूँ जिंदगी,मैं अधूरे मन से,
निकलता नहीं गाँव जाने क्यों मेरे जीवन से!!
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उगी हो फसलें तो खेत खलिहान होते हैं,
नहीं तो बंजर बीराने मैदान होते होते हैं,
यूँ तो जीने को जीते हैं सभी यहाँ पर,
पर जो दूसरो के काम आ जाये वही इन्सान होते हैं!!
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भाग्य को कभी जीने का आधार नहीं माना है,
प्यार को प्यार माना है कभी बाज़ार नहीं माना है,
माना की गरल है जीवन,
पर जीवन को कभी दुखो का सार नहीं माना है!!
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हर शाम यहाँ हमे तनहाइयों में गुजारी है,
आँखों में बसी बस चाहत अब तुम्हारी है,
हम तुम्हे जिंदगी भर के लिए पायें न पायें,
सपनो में तुम्हे पाने की आरजू हमारी है!!
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मैं इन्सान हूँ,बहक जाता हूँ,
सिर्फ अंगारों को देखकर दहक जाता हूँ,
तुम जब भी पास से गुजरती हो,
तुम्हारी खुशबू से मैं बी ही महक जाता हूँ!!
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shabdon aur bhavnaon ko jab ek saath peroya jaata hai tab hi itni achi panktiyon ki rachna hoti hai. vaise to puri kavita hi behad bhavpooran hain par 3rd stanza"bhagya ko ...................dukhon ka saar nahi maana"-------- mughey ye panktiyan sabsey achi lagi.............
ReplyDeletegr8 work.............