रोटी, कपडा और मकान
जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं,
और इन तीनो चीजों के नाम की तीन रेखाएं,
इन तीन रेखाओ से निर्मित त्रिभुज,
इस त्रिभुज के अन्तः वृत्त में फसा,
मानव का जीवन,
मानव-जो कभी इन से परे कुछ सोच ही नहीं पता,
सोचता है बस,
अपना-पराया,
अपना घर,
अपने लोग,
अपना स्वार्थ,
और स्वार्थ सिद्धि,
इन्ही सब में जीवन सिमटता जा रहा है,
परमार्थ की कहीं कोई भावना ही नहीं रही,
अन्तः वृत्त और त्रिभुज के बाहर आकर,
परि वृत्त बनाने की कोई कोशिश ही नहीं करता है,
हर कोई बस अपने को देख रहा है,
दुनिया, देश या समाज कोई देखता ही नहीं है,
यही शून्यता,
यही आत्मकेंद्रीकरण,
मानव होने के वास्तविक मूल्यों में,
गिरावट का मुख्या कारण है!!
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shat-pratishat aaj ke manav ki sachai ......everybody gets self-centerd, selfish.....
ReplyDeleteNo ethics no values in life..... sirf apna kaam nikalna hai chaey kaise bhi nikalo......
aapki ye kavitayein sahi mein sochne par majboor kar deti hain ki aaj hum aur humara samaj kitney mulyaheen ho gayein hain...........
ReplyDeleteawesome poem !!!
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