Monday, September 21, 2009

!!वो नहीं आये बार बार जिनकी याद आई!!

मैं नहीं जानता,
मेरे खेतो में,
कितनी बार,
सरसों फूली,
कितनी बार,
मेरी बगिया अमराई!
बस जानता हूँ,
तो ये,
की वो नहीं आये,
बार बार जिनकी याद आई!!

कितने सावन सूखे गुज़रे,
कितने भादव भीगे,
कितने गर्मी जेठ पड़ी,
और कितनी ठंढी माह,
कहाँ शहर है,
कहाँ गाँव है,
किसकी कैसी राह!
मैं न जानू कितनी लू लग गयी मुझे,
और कितनी फटी बेवायीं!
बस जानता हूँ,
तो ये,
की वो नहीं आये,
बार बार जिनकी याद आई!!

नहीं जानता की मैं कौन हूँ?
क्या हूँ?
कहाँ का वाशिंदा हूँ?
कह नहीं सकता कि
क्या सचमुच मैं जिन्दा हूँ?
मुझे नहीं पता है,
कि सुखा कब कब आया,
और कब कब नदी उफनाई!
बस जानता हूँ,
तो ये,
की वो नहीं आये,
बार बार जिनकी याद आई!!

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