भविष्य के पटल पर,
मैंने अगाडित चित्र बनाये थे,
समय की धार,
कुछ यूँ प्रवाहमान हुई,
चित्र तो चित्र,
चित्रों के निशान भी मिट गए,
शेष हैं सिर्फ,
धुंधली सी यादें,
जीवंत करती हुई,
सपनो के उस संसार को,
जिसे मैंने चक्षुओ में बसाया था,
जिसे मैंने अश्रुओ में बहाया है!
यही द्वंद्वात्मक स्वरुप,
और सपनो के मधुर चित्र,
जीवन के प्रत्येक कदम पर,
आज भी उपस्थित हैं!
पर जीवंत नहीं!
जीवंत नहीं!
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