नहीं कर सका मैं,
भौतिक विरोध,
अपने जीवन में,
परिस्थितियों के बवंडर का,
विरोध किया,
पर वैचारिक,
नि:शब्द रहा मैं,
निस्तब्ध रहा मैं,
पर लेखनी चली,
और शब्द लिखे!
एक विचार,
जो मेरे मन में आया,
उस बवंडर के बाद,
कि..............
मुझसे अच्छे तो वे तरुवर हैं,
जो,
विपदा के बाद भी,
सुरक्षित रहते हैं!
अब,,,,,
फर्क ही क्या पड़ता है,
जड़ और चेतन में!
मेरी ये दोनों भुजाएं,
जो बल का प्रतीक मणि जाती हैं,
नदी के उन दो किनारों की तरह हैं,
जो,
नदी में किसी डूबने वाले को देख कर,
सिर्फ देखते रहते हैं,
पर कर कुछ नहीं पाते!
पर कर कुछ नहीं पाते!
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shabdo ko is tarah pero diya k vokavita kab gaye
ReplyDeletedear...acctulay ds is very emotional story and its real story...
ReplyDeleteAakhari stanza kitani wiwashata dikhlata hai hum manushyan kee. sunder kawita.
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